जानिये, आखिरी स्‍टेज के कैंसर से लड़ कैसे जीतीं मनीषा

जानिये, आखिरी स्‍टेज के कैंसर से लड़ कैसे जीतीं मनीषा

कैंसर ऐसी बीमारी है जिसका नाम भी किसी शख्‍स की आधी जान यूं ही निकाल देता है। बची-खुची कसर बीमारी के इलाज के दौरान पूरी हो जाती है। इसके बावजूद कुछ लोग हैं जो न सिर्फ इस जानलेवा बीमारी का डटकर मुकाबला करते हैं बल्कि इस जंग में जीत भी हासिल करते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत हैं बॉलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला जिन्‍होंने आखिरी स्टेज के ओवेरियन कैंसर को हरा कर ज‍िंदगी की जंग जीती है। कैंसर के खिलाफ उनकी जंग इस बीमारी से पीड़‍ित लाखों लोगों को प्रेरणा दे इसलिए उन्‍होंने अपने अनुभवों को किताब की शक्‍ल में लोगों से साझा करने का फैसला किया और इसी फैसले का परिणाम है ‘हील्ड : हाउ कैंसर गेव मी ए न्यू लाइफ’।

उनकी इस किताब और कैंसर के खिलाफ लड़ाई की चर्चा जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में हुई। उनकी कहानी ने जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में उन्हें सुन रहे हर आदमी की आखें नम कर दी। मनीषा ने कहा कि मौत एक सच्चाई है और समय आने पर सबको जाना ही पड़ता है, लेकिन कैंसर मौत की घोषणा नहीं है। उन्‍होंने कहा कि इस बीमारी में हिम्‍मत रखकर अपनी ओर से हर संभव कोशिश सभी को करनी चाहिए।

जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल में मनीषा ने फेस्टिवल डॉयरेक्टर संजोय के रॉय के साथ इस किताब के जरिए वे अनुभव लोगों के साथ बांटे, जिनसे इस बीमारी और उपचार के दौरान वे गुजरी। मनीषा ने कहा कि इस बीमारी ने मुझे यह बहुत बेहतर ढंग से समझा दिया कि इस धरती पर हम बहुत कम समय के लिए आए हैं और इस समय में हम अपने और दूसरों के लिए जो भी अच्छा कर सकते हैं, वह जरूर करना चाहिए। मनीषा ने बताया कि मेरी बीमारी के दौरान मेरे अनुभव बहुत अलग रहे। जिनसे उम्मीद थी कि साथ देंगे, वे साथ नहीं आए। मेरे भाई को मैं बहुत गैर जिम्मेदार मानती थी, लेकिन उसने इस पूरे दौर में मुझे बहुत बेहतर ढंग से संभाला। न्यूयॉर्क में एक डॉक्टर दंपति हर रविवार मेरे पास आता था। मैंने एक दिन उनसे पूछा कि आप इतने व्यस्त रहते है, लेकिन फिर भी आप मेरे पास आ कर समय बिताते हैं, ऐसा आप क्यों करते हैं तो उनका कहना था कि हम सिर्फ इस उम्मीद में आते हैं कि आप भी किसी जरूरतमंद के साथ ऐसा ही कुछ करेंगी। उसी समय मैंने तय कर लिया था कि यदि मुझे दूसरी जिंदगी मिली तो लोगों के लिए जो बेहतर हो सकेगा, वह करने की कोशिश करूंगी। इसके साथ ही यह भी तय किया था कि अच्छी हो गई तो अपनी कहानी लोगों तक जरूर पहुंचाऊंगी, ताकि लोगों को लगे कि कैंसर होना मौत की घोषणा नहीं है।

मनीषा ने बताया कि कैंसर के बारे में मुझे जब सबसे पहले बताया गया तो वह रात मेरी सबसे लंबी और अकेली रात थी। समय कट ही नहीं रहा था। फिर जब मैं मुंबई में आई दोबारा जांच कराने के लिए तो कहीं दिल में एक उम्मीद थी कि मेरी पहली जांच गलत निकलेगी। काठमांडू से मुंबई तक का दो घंटे का सफर भी पूरी जिंदगी का सफर लग रहा था। डॉक्टर ने जब दोबारा जांच कराने के लिए कहा तो फिर एक उम्मीद जागी, लेकिन वो नहीं हुआ जो सोचा था। मनीषा ने बताया कि इस बीमारी के दौरान मैं लोगों को चेहरे पढ़ना बहुत अच्छी तरह जान गई थी, पता लग जाता था कि क्या हो रहा है।

मनीषा ने कहा कि कैंसर जैसी कोई भी बीमारी हो तो यह जरूरी है कि आप इसके बारे में खुद सब कुछ जानिए। मैंने ऐसा किया। मुझे आखिरी स्टेज का कैंसर था। मुझे पता था कि आॉपरेशन के दौरान मेरी मौत भी हो सकती है, लेकिन मैंने सोचा कि मरना तो है ही, लेकिन कोशिश करने में क्या हर्ज है। अच्छे डॉक्टर की खोज की। इस बीमारी के बारे में बहुत पढा और जाना। इससे आप अपने इलाज के बारे में बेहतर ढंग से समझ पाते है और खुद पर आपका नियंत्रण बना रहता है।

मनीषा ने कहा कि जब डॉक्टर अपना काम कर चुके होते हैं तो फिर खुद आपको अपने लिए काम करना पड़ता है। इस दौरान दिमागी संतुलन बनाए रखिए और खुद की सेहत सुधारने के लिए जो भी प्रयास कर सकते हैं, वह करिए। सबसे बडी बात है, हौसला बनाए रखिए और डॉक्टर की हर बात मानिए। यह मान कर चलिए कि शायद आपके जीवन में कुछ असंतुलन था, जिसे ठीक करने के लिए यह बीमारी आई है। अपनी गलतियों को ठीक कीजिए।

(दैनिक जागरण से इनपुट के साथ)

Disclaimer: sehatraag.com पर दी गई हर जानकारी सिर्फ पाठकों के ज्ञानवर्धन के लिए है। किसी भी बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या के इलाज के लिए कृपया अपने डॉक्टर की सलाह पर ही भरोसा करें। sehatraag.com पर प्रकाशित किसी आलेख के अाधार पर अपना इलाज खुद करने पर किसी भी नुकसान की जिम्मेदारी संबंधित व्यक्ति की ही होगी।